इसमाद

Wednesday, April 20, 2016

‘पुत्र मोह’ में नीतीश कुमार के आगे झुके लालू प्रसाद !

  • विजय कुमार श्रीवास्‍तव 


देश के धाकड़ समाजवादी नेताओं में से एक राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद ने बिहार के सीएम और जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार को 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के रूप में समर्थन देने का एलान कर दिया है। अभी कुछ ही महीनो पहले लालू ने कहा था कि नीतीश कुमार बिहार की राजनीति करेंगे जबकि वे केंद्र के मसले देखेंगे। लेकिन लालू अब अपने पूर्व के एलान से पटलटने पर मज़बूर हो गए। राजनीतिक गलियारों में लालू के ताज़ा एलान को कई दृष्टिकोणों से देखा जा रहा है। जानकारों का कहना है कि बड़े भाई लालू ने अपने बेटों तेजस्वी और तेज प्रताप के राजनीतिक करिअर को देखते हुए छोटे भाई नीतीश के आगे घुटने टेक दिए हैं। हालांकि राजनीतिक पंडितों ने इस एलान के कई अन्य मायने लगाए हैं। इसमें नीतीश के तीर से भाजपा पर निशाना साधना और छोटे भाई की राजनीतिक नैया पर सवार होकर पटना से दिल्ली तक का सफर तय करने की मंशा के अलावा कई अन्य मंसूबे शामिल हैं।
जो भी व्यक्ति लालू प्रसाद की राजनीति को पैनी नज़र से देखता आया है उसे मालूम होगा कि लालू प्रसाद देश में कई मौक़ों पर किंग मेकर की भूमिका में रहे हैं। वे भले ही देश का पीएम नहीं बन पाए हों लेकिन इंद्र कुमार गुजराल, एचडी देवगौड़ा से लेकर चंद्रशेखर और वीपी सिंह की पीएम के रूप में ताज़पोशी में कमोवेश लालू की भूमिका ज़रूर रही थी। राजनीतिक विश्लेषकों को ये भी पता है कि कैसे लालू ने अपने ही समाजवादी कुनबे के तत्कालीन बड़े नेताओं मुलायम सिंह यादव और रामविलास पासवान के पीएम बनने की राह में रोड़ा अटका दिया था। ऐसे अवसरवादी लालू प्रसाद एक अन्य समाजवादी नेता नीतीश कुमार को अगर पीएम उम्मीदवार के रूप में तीन साल पहले ही प्रमोट कर रहे हैं तो इसके कई मायने हैं।
हाल ही में जदयू का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए जाने के बाद बिहार के सीएम नीतीश कुमार के सितारे बुलंदी पर हैं। राष्ट्रीय राजनीति की पिच पर पहला बड़ा स्ट्रोक मारते हुए नीतीश ने देश को संघ मुक्त बनाने के अभियान का एलान कर दिया। नीतीश के इस अभियान का देश मे ग़ैर भाजपा दलों का व्यापक समर्थन मिल रहा है। लालू प्रसाद नीतीश की बढ़ती लोकप्रियता को भुनाने की कसर में लग गए हैं। वे जानते हैं कि देश में भाजपा का प्रभाव कम करना अब उनके बूते में नहीं रहा। इसलिए वे नीतीश को आगे कर रहे हैं। उन्हें उम्मीद है कि 2019 में नीतीश कुमार केंद्रीय सत्ता में आए तो बड़े भाई के रूप में उन्हें भी सत्ता में भागीदारी मिलेगी। दूसरा कारण ये भी है कि लालू को ये लगता है कि नीतीश जैस-जैसे केंद्र के नज़दीक जाएंगे वैसे वैसे बिहार की सत्ता उनके बेटों के ज्यादा नज़दीक आएगी। लालू को ये भी उम्मीद है कि अगर सबकुछ ठीक ठाक रहा तो वर्ष 2019 के पहले ही बिहार की सत्ता उनके बटे और बिहार के उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव को मिल सकती है। उसके बाद अगले साल यानि 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में बिहार में जीतना आसान हो जाएगा।
बिहार की राजनीति को क़रीब से जानने वाले ये भी जानते हैं कि नीतीश कुमार और लालू प्रसाद का गठबंधन दो अवसरवादियों का मज़बूरी में हुआ गठजोड़ है। नीतीश कुमार अवसर मिलने पर भाजपा के सहयोग से भी केंद्रीय सत्ता पाने में नहीं हिचकेंगे। वहीं लालू प्रसाद अपने बेटों के माध्यम से बिहार की सत्ता में काबिज़ रहने के मंसूबों पर पानी फिरता देख नीतीश की राह में रोड़े अटकाने से भी नहीं हिचकेंगे। अब समय ही ये बता पाएगा कि नीतीश और लालू के मंसूबे पूरे हो पाते हैं या नहीं।

लेखक ईटीवी बिहार में संवाददाता हैं। 

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