इसमाद

Wednesday, April 20, 2016

राहुल गांधी के लिए नीतीश कुमार को ना !

  • विजय कुमार श्रीवास्‍तव 

वर्ष 2019 में देश का पीएम बनने का मंसूबा पाले बैठे बिहार के सीएम और जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार के लिए राष्ट्रीय राजनीति में पांव जमाना उतना आसान नहीं है। नीतीश संघ और भाजपा मुक्त भारत के नारे के बूते गैर भाजपा दलों को एक मंच पर ‘अपने समर्थन’ में लाना चाहते हैं। लेकिन उनके मंसूबे पर राष्ट्रीय दल कांग्रेस ने पानी फेर दिया है। कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता डॉ शकील अहमद ने नीतीश के अभियान की तारीफ़ तो की लेकिन इशारों-इशारों में ये बता दिया कि राहुल गांधी पर एक और दांव खेलने का निर्णय लेने जा रही उनकी पार्टी नीतीश कुमार को पीएम के रूप में नहीं देखना चाहती है। कांग्रेस के इस रूख की वज़ह से नीतीश के लिए मुश्किलें खड़ी हो गई हैं।
राष्ट्रीय पार्टी के रूप में कांग्रेस का समय समय पर उत्थान और पतन इस देश में कोई नई बात नहीं है। इसी का एक नज़ारा वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव परिणाम के रूप में भी दिखा जब केंद्र में कांग्रेस को चारों खाने चित्त करते हुए भाजपा ने उससे शासन छीन लिया। कांग्रेस के इस बार के पतन ने ही क्षेत्रीय दलों के साथ मिलकर उसे राजनीति करने पर मज़बूर कर दिया। बिहार में नीतीश और लालू के साथ गठबंधन करने को मज़बूर हुई कांग्रेस को विधानसभा चुनाव में सिर्फ ताक़त ही नहीं मिली बल्कि वर्षों बाद सूबे की सत्ता में भागेदारी भी मिली। इससे कांग्रेस फिर से उत्साह से भर गई। उसे लगता है कि दिनोदिन गिरती भाजपा की साख का सीधा फ़ायदा उसे वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में मिल सकता है। इसलिए वो अभी से सचेत है।
उधर, बिहार में बड़ी चुनावी जीत से उत्साहित नीतीश कुमार, लालू प्रसाद और कांग्रेस के बूते राष्ट्रीय राजनीति में पांव जमाकर वर्ष 2019 में पीएम बनने का ख्वाब देख रहे हैं। लालू प्रसाद ने कई कारणों से नीतीश के पीएम उम्मीदवार बनने पर अपना समर्थन देने का एलान कर दिया। लेकिन कांग्रेस ऐसा नहीं करना चाहती है। इसके कई कारण हैं। सबसे पहला और बड़ा कारण ये है कि कांग्रेस को नीतीश कुमार की अवसरवादिता खटकती है। उसे लगता है कि नीतीश कुमार केंद्र की सत्ता तक पहुंचने के लिए आज भले ही कांग्रेस का साथ ले लें लेकिन अगर परिस्थितियां जटिल होती हैं तो वे भाजपा या कांग्रेस विरोधी अन्य दलों के साथ मिलकर भी सत्ता के शीर्ष पर जाने में संकोच नहीं करेंगे। इसलिए कांग्रेस बड़ी सावधानी के साथ कदम बढ़ा रही है। उसे बिहार में न सिर्फ सत्ता में बने रहना है बल्कि इसी बहाने इस राज्य में अपना खोया हुआ जनाधार फिर से पाना है। कांग्रेस ये भी जानती है कि दरअसल राजद और जदयू का वोट बैंक ही उसका पुराना जनाधार है। अगर राष्ट्रीय स्तर पर नीतीश कुमार के साथ समझौता किया गया तो उसे बहुत फ़ायदा नहीं मिलेगा। डॉ शकील अहमद ने ये साफ़ कर दिया है कि नीतीश कुमार की पार्टी या महागठबंधन का राष्ट्रीय स्तर पर बहुत जनाधार नहीं है।
कांग्रेस को ये भी लगता है कि भाजपा की नीतियों की वज़ह से केंद्र में उसकी सरकार 2019 के बाद वापस नहीं आएगी। ऐसे में चाहे नीतीश का साथ लें या न लें कांग्रेस फ़ायदे में ही रहेगी। हालांकि कांग्रेस में अभी इस बात को लेकर एक राय बनाई जा रही है कि राहुल गांधी को पीएम उम्मीदवार बनाया जाए या नहीं। 2019 के लोकसभा चुनाव के पूर्व कांग्रेस का नीतीश के साथ गठबंधन होगा या नहीं ये भी अभी भविष्य के गर्भ में है। इसलिए कांग्रेस अभी हो रहे या आने वाले राज्यों के विधानसभा चुनावों में भी फूंक फूंक कर कदम रख रही है। वो ये संदेश नहीं देना चाहती है कि उसने अभी से नीतीश कुमार को पीएम उम्मीदवार मान लिया है। हालांकि कांग्रेस और भाजपा दोनो इस दांव में माहिर हैं कि एक दूसरे को पटखनी देने के लिए नीतीश कुमार को समर्थन दे दिया जाए। आगे राजनीति का ऊंट नीतीश, कांग्रेस और भाजपा के लिए किस करवट बैठेगा ये तो समय ही बताएगा लेकिन इतना तो तय है कि आने वाले समय में भी नीतीश कुमार राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में बने रहेंगे।

- लेखक ईटीवी बिहार में संवाददाता हैं।

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