इसमाद

Tuesday, September 19, 2017

मिथिला मे तंत्र आओर धार्मिक चित्रकला क अवधारना


आशीष झा

हिंदू सबहक शाक्‍त संप्रदाय मे ईश्‍वर तक पहुंचबाक या ओकरा प्राप्‍त करबा
लेल दूटा मार्ग बताउल गेल अछि। तंत्र ओहि मार्ग मे सबसे कनि आ व्‍यापक
मार्ग अछि। ‘पिंड लामत’ नामक ग्रंथ क अनुसार  तंत्र ओकरा कहल जाइत अछि
जाहि स चारू कातक वस्‍तु क ज्ञान हो। ओतहि आधुनिक काल मे तंत्रशास्‍त्र आ
ओकर ज्ञानक पुनरउद्धार करनिहार महान विदेशी विद्वान जॉन उडरफ क मतानुसार
तंत्र यर्थात: अपन प्रकृति स बनल एकटा विश्‍वकोषात्‍मक विज्ञान अछि जे
व्‍यावहारिक हेबाक संग संग मार्ग प्रदर्शित करनिहार सेहो अछि। एहि प्रकार
स कहल जा सकैत अछि जे तंत्र विधा एकटा नितांत स्‍वतंत्र आ रहस्‍यात्‍मक
दृष्टिकोण अछि। स्‍वंय तांत्रिक ग्रंथ तक एकर सर्वमानय परिभषा नहि द सकल
अछि। एकर पाछू कारण रहल जे तांत्रिक शब्‍दावली आ तांत्रिक क्रियाकलाप
एतबा गूढ़, नितांत प्रतीकात्‍मक आ सूत्रात्‍मक अछि जे एकर सर्वमानय
परिभाषा देब संभव नहि रहल।
मिथिला ओहि किछु क्षेत्र विशेष मे अबैत अछि जाहि ठाम तंत्र क जडि काफी
गहीर अछि। एहि ठाम शाक्‍त संप्रदाय क वाम मार्ग आ तंत्र क प्रयोग एक संग
भेटैत अछि। उपासना आ खोज क नियम जतय तंत्रक पाछू चलैत देखाइत अछि ओतहि
तंत्र क पंचाकार – मदिरा, मांस, मुद्रा, मीन आ मैथून कए शाब्‍दीक अर्थ मे
ग्रहण करब एहि ठाम सर्वथा अनुचित मानल गेल अछि। एहि प्रकार एहि ठामक
संस्‍कृति मे शिव स विशेष महत्‍व पार्वती कए भेटल अछि। अत: एहि विचारधारा
एहि माननिहार लेल शक्ति अर्थात स्‍त्री सर्वशक्तिमान छथि आ ओकरे पूजा
तंत्र मार्ग क एक मात्र ध्‍येय होइत अछि।
तांत्रिक विचारधारा या मार्ग मे सबस प्रमुख आ अदभुत वस्‍तु यंत्र होइत
अछि। जाहि प्रकार मंत्र ध्‍वनी प्रधान अभिव्‍यक्ति अछि ओहिना यंत्र आकार
प्रधान अभिव्‍यक्ति होइत अछि। जेना विद्वान समय समय पर मंत्र क रचना करैत
रहलाह अछि तहिना समय समय पर यंत्र क रचना होइत रहल अछि। चूंकि तांत्रिक
साधना मे यंत्र निर्माण आ पूजा अनिवार्य रूप स जुडल अछि ताहि लेल मिथिला
मे पैघ संख्‍या मे यंत्रक निर्माण कैल जाइत रहल अछि। वस्‍तुत: यंत्रक
निर्माण स तांत्रिक सिद्धांत क अभिव्‍यक्ति प्रकट होइत अछि। अत: तांत्रिक
चित्रकला क आकार प्रधान प्रतीक क अध्‍ययन प्रमुख रूप से मिथिलाक यंत्र
रचना स जुडल अध्‍ययन अछि।
अन्‍य स्‍थानक भांति मिथिला मे सेहो तांत्रिक चित्रकला मूल रूप स 12टा
ढार रेखा, बिंदु, रेखावृत, त्रिकोण, चतुष्‍कोण, आदि रेखापरक आकार मे बनल
भेटैत अछि। संग हि संग एहि ठाम देशक प्रत्‍येक रेखात्‍मक आकार क प्रतीक आ
यंत्र निर्माण मे विनियोग क एकटा सुनिश्चित पद्धति आ सिद्धांतिक मान्‍यता
सेहो देखबा लेल भेटैत अछि।
मिथिला मे तांत्रिक चित्रकला क उपलब्‍ध नमूनाक अध्‍ययन स इ स्‍पष्‍ट भ
जाइत अछि जे एहि ठाम रेखागणितीय या ज्‍यमीतीय आकर आ प्रतीक क सबस बेसी
महत्‍व अछि। तंत्र स भिन्‍न धार्मिक आ आध्‍यात्मिक कला मे एहन प्रतीक क
ऐना स्‍वतंत्र आ विशेष महत्‍व प्राय: नहि देखबा लेल भेटैत अछि। मिथिला क
तांत्रिक चित्रकला रचना मे प्रयुक्‍त प्रमुख प्रतीक क वर्गीकरण एहि रूप
मे कैल जा सकैत अछि। 1, रेखागणितीय आकार, 2, बीजाक्षर,3 बीज संख्‍या या
अंक, 4 विशेष देव आकार स्‍वरूप, 5 मानव आकार, 6 साधन परक भावात्‍मक बा
कृत्‍यात्‍मक प्रतीक, 7 प्राकृतिक शक्ति आ प्राकृतिक सत्‍ता, 8 विभिन्‍न
अचेतन वस्‍तु।
रेखागणितीय प्रतीक मे सबस पहिल आ प्रमुख अछि ‘बिंदु’, जे सर्वोच्‍चय
सत्‍ता क सुक्ष्‍तम कलात्‍मक अभिव्‍यक्ति क द्योतक अछि। मिथिलाक तांत्रिक
चित्रकला में एकरा सृष्टि निर्माण प्रक्रिया क पहिल आकारात्‍मक रूप मानल
गेल अछि। निश्चित रूप स इ सब प्रकारक कलात्‍मक अभिव्‍यक्ति क सेहो पहिल
आकार अछि जे आकारहीनता स आकार दिस अभिव्‍यक्ति कए जेबाक पहिल चरण अछि।
यंत्र क निर्माण मे बिंदु क मिलन स रेखा बनैत अछि आ एहिना रेखात्‍मक
आकारक विकास होइत जाइत अछि। स्‍वरूपात्‍मक जगत क विकासक प्राथमिक शक्ति क
अंकन तंत्र कला मे रेखा क माध्‍यम स कैल जाइत अछि।
मिथिलाक तांत्रिक चित्रकला में रेखाक योग स त्रिकोण बनैत अछि, जे यंत्र
निर्माण मे अत्‍यंत महत्‍वपूर्ण स्‍थान रखैत अछि। तंत्र कला मे त्रिकोण
कए योनि अर्थात मातृशक्ति क प्रतीक मानल गेल अछि। एकर उर्ध्‍वमुखी रूप कए
पुरुष तत्‍व क प्रतीक क रूप मे प्रस्‍तुत कैल जाइत अछि। एहिना एहि कला मे
चतुष्‍टकोण सृष्टि प्रक्रिया क व्‍यवस्‍था क द्योतक अछि जे अन्‍य सबटा
प्रतीक लेल आवरण या प्रतिष्‍ठा क काज करैत अछि। यंत्र रचना मे बिंदु बा
केंद्र क विकासशील छंदात्‍मक स्‍वरूप कए बतेबा लेल वृत क मंडल क प्रतीक
एहि ठाम प्रमुखता स देखबा लेल भेटैत अछि।
एहि प्रकार स कहल जा सकैत अछि जे तंत्र में यंत्र रचना एकदम निजी विशेषता
अछि। स्‍वयं देवताक प्रतीमा सेहो यंत्र क एकटा रूप अछि। एहि प्रकार
उपलब्‍ध यंत्र क मिथिला मे असंख्‍य उदाहरण भेटैत अछि। मुदा प्रमुख यंत्र
मे सबस बेसी लोकप्रिय यंत्र श्रीचक्र अछि। इ पुरुष आ स्‍त्री  अर्थात शिव
आ शक्ति क संयुक्‍त प्रतिकात्‍मक स्‍वरूप प्रकट करैत अछि। एहि मे नौ टा
चक्र आ नौ टा त्रिकोण एकत्र भ कए एकटा विशिष्‍ट यंत्र क रूवरूप बनबैत
अछि।
चूंकि तंत्र साधना मे स्‍त्री सहयोगी एकटा अनिवार्य शर्त अछि, अत: मानव
अवयव क आकर पर लेल गेल पुरुष आ स्‍त्री क प्रजननात्‍मक चिन्‍ह लिंग आ
योनि कए एहि कला मे विभिन्‍न रेखात्‍मक रूवरूप मे अंकन कैल जाइत अछि। एहि
मे बिंदु, त्रिकोण, वृत, पद्य, चतुरस्‍त, वास्‍तुगत विन्‍यास आदि क अदभुत
विनियोग देखबा लेल भेटैत अछि। मिथिला मे निर्मित अन्‍य यंत्र मे सेहो
मुख्‍यत: एहि प्रतीक क आवश्‍यकतानुसार प्रयोग भेटैत अछि। मुदा सिद्धिपरक
यंत्र मे पशुआकार, पक्षीआकर, बीजाक्षर, पदचिन्‍ह, हस्‍त चिन्‍ह, भवन,
पर्यावरण पर आधारित चित्र आ प्रतीक देखबा लेल भेटैत अछि।
मिथिलाक तांत्रिक चित्रकला में देवी क कईटा रूप क उपासना देखबा लेल भेटैत
अछि जाहि मे हुनकर भूमिगत स्‍वरूप सेहो शामिल अछि। एहन दस प्रमुख देवी
स्‍वरूप जेकरा दस महाविद्या कहल गेल अछि ओहि मे सबस प्रमुख तांत्रिक
स्‍वरूप छिन्‍नमस्तिका आ शव-शिवा काली क अछि। एहि अदभुत तांत्रिक स्‍वरूप
क तहत शव रूप शिव पर देवी संभोग मुद्रा मे आसीन अंकित कैल गेल छथि। एहिना
संहार आ विनाश  क विचित्र स्‍वीकृत प्रतीक मे नर मुंड क विशेष स्‍थान
मानल गेल अछि। छिन्‍नमस्तिका स्‍वरूप मे देवी अपने अपन मुड़ी काटि हाथ मे
उठेने देखाउल गेल छथि। एकटा विशेष स्‍वरूप क तहत देवी सात टा नर मुंड क
आसन पर बैसल देखा रहल छथि।
वाममार्गी तंत्र साधक क संख्‍या मिथिला मे काफी रहल अछि आ एहि ठामक विशेष
मान्‍यताक तहत भावनात्‍मक आ कृत्‍यात्‍मक प्रतीक क सेहो यंत्र मे खबू
प्रयोग देखबा लेल भेटैत अछि। इ एहि ठामक विशेष शैली कहल जा सकैत अछि। एहि
शैली क तहत बनाउल गेल यंत्र मे पंचभूत आ पंच तत्‍व प्रमुख अछि। उदाहरण त
रूप मे कृष्‍ण आ गोपी क चीरलीला कए लेल जा सकैत अछि। एहि यंत्र मे गोपी
कए पंच तत्‍व क रूप मे प्रतीकात्‍मक रूवरूप मे लेल गेल अछि। एहिना पांच
महाभूत कए देखेबा लेल हाथ क पांच टा जोड़ा क चित्र बनाउल गेल अछि।
प्राकृति शक्ति क प्रतीक मे सर्वोच्‍च रूप स सूर्य आ चंद्रमा क अंकन कैल
जाइत अछि। तहिना बांस आ पुरैन गाछ आ लत्‍ती क सवोच्‍चता पौने अछि।
मिथिलाक तांत्रिक चित्रकला क एकटा आधारभूत विशेषता एकर रंग चयन क
प्रतीकात्‍मकता या प्रतीकवाद अछि। इ विभिन्‍न आर्दश आ सिद्धांत बहुत हद
तक वैज्ञानिक मान्‍यता पर सेहो आधारित कहल जा सकैत अछि। रंग क
प्रतीकात्‍मकता जाहि रूप में मिथिला मे निर्मित यंत्र मे भेटैत अछि ओ
आजुक समय मे एकटा शोध क रोचक विषय भ सकैत अछि। एहि कला क रेखात्‍मक
प्रतीक मे क्रमश: स्‍वेत आ रक्‍त (लाल) वर्ण क दूटा बिंदू आ रेखा क
प्रयोग भेटैत अछि। जखनकि अन्‍य मूर्तिगत तांत्रिक चित्र मे स्‍वेत आ
रक्‍त क सं संग संग नील, पीयर वर्णक सेहो प्रयोग देखार होइत अछि। एहि मे
करिया वर्ण क विशेष महत्‍व बुझाउल गेल अछि।
इ सर्वमान्‍य अछि जे समस्‍त तांत्रिक विधा सदेव एकटा गूढ शास्‍त्र आ
साधना पद्धति रहल अछि। अत:  एकर संबंध मे सामान्‍य व्‍यक्ति कए जानकारी
भेटब काफी कठिन रहल अछि। एहि शास्‍त्रक संबंध मे अल्‍प ज्ञानक कारण स
अनेक विद्वान अपन शोध आ रचना मे एकर जमि कए आलोचना केलथि अछि। तंत्र विधा
क निंदा करैत किछु विद्वान त एकरा कामशास्‍त्र आ काला जादू तक लिख चुकल
छथि। मुदा तंत्र पर लिखल गेल सबस पुरान ग्रंथ ‘आगम’ क अनुसार तंत्र अपन
माध्‍यम स परंपरा क एकटा विशेष विचारधारा, तत्‍संबंधी शास्‍त्र, दार्शनिक
सिद्धांत आ जीवनक ओहि आचार –वयवस्‍था क बोध होइत अछि जेकर माध्‍यम स इ
संसार सुचारू रूप स चलि सकैत अछि। अत: तंत्र केवल शाक्‍त नहि बल्कि शैव,
वैष्‍णव, बौद्ध व जैन संप्रदाय मे सेहो कम या बेसी मात्रा मे देखबा लेल
भेट जाइत अछि।
इ मानबा मे कोनो हर्ज नहि जे मिथिला क यंत्र निर्माण मे लागल तांत्रिक
चित्रकलाक कलाकार मौलिक रूप स एकटा साधक रहला अछि। एकर पुष्टि एहि तथ्‍य
स सेहो होइत अछि जे तांत्रिक चित्रकला क नाम पर बनाउल गेल अधिकतर चित्र आ
वस्‍तु तांत्रिक साधना क निजी रहस्‍यात्‍मक साधना क उपयोग क वस्‍तु रहल
अछि। एकर निर्माण प्राय: साधक स्‍वंय या फेर एकर दीक्षित अन्‍य व्‍यक्ति
करैत रहला अछि। एहि कारण स तांत्रिक विषयक ज्ञान क अभाव मे सामान्‍य
कलाकार तांत्रिक चित्रकला क नाम पर निष्‍प्रभावी यंत्र क निर्माण करैत
रहलाह। जेकर व्‍याख्‍या सेहो अपन अपन तर्क स होइत रहल। आजुक स्थिति में
यंत्र क अर्थक एतबा अधिकता भ चुकल अछि जे ओकर सार्थकता पर प्रश्‍नचिन्‍ह
लगा देलक अछि।
संदर्भ :-
अजीत मुखर्जी – तंत्र आर्ट
दुर्गा प्रसाद – काली विकास तंत्र
आर्थर खलल – तांत्रिक ट्रेंडस
जनार्दन मिश्र- भारतीय प्रतीक विधा गोपीनाथ – योगिनी
देवदत्‍त शास्‍त्री – तंत्र सिद्धांत और उपासना 
लक्ष्‍मीनाथ झा – मिथिला की सांस्‍कृतिक लोकचित्र कला

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