Sunday, April 26, 2009
हमारे जैसा ही होगा हमरा प्रधानमंत्री
मैथिली में एक कहावत है- पोखर मे माछ आ नौ-नौ कुटिया बखरा अर्थात तालाब में मछली और नौ-नौ टुकरों में बंटबारा। यह कहावत आजकल प्रधानमंत्री पद को लेकर राजनीतिक दलों व नेताओं के बीच काफी सटीक बैठ रहा है। मतदान हुए नहीं है, गठबंधन बना नहीं है, लेकिन प्रधानमंत्री बननेवालों की कतार लंबी ही होती जा रही है। आज जो भी नेता दो-चार सांसदों का समर्थन पाने की उम्मीद रखता है, वो प्रधानमंत्री पद का दावेदार बन रहा है। मानो प्रधानमंत्री पद मजाक हो। आखिर इसकी वजह भी है। जिस प्रकार गुजराल व देवेगौड़ा हमारे देश के प्रधानमंत्री बने, ऐसे में तो इसबात की कल्पना की ही जा सकती है कि आनेवाले समय में कोई भी नेता प्रधानमंत्री बन सकता है। सच पूछा जाए तो लोकतंत्र में अच्छा और बुरा दोनों जनता के माध्यम से ही संभव हो पाता है। लोकतंत्र के संबंध में कहा भी गया है कि समाज में अगर अनैतिक लोगों की संख्या अधिक होगी, तो नेतृत्वकर्ता भी कोई अनैतिक ही होगा। जब समाज ही अराजक हो जाएगा, तो सत्ता को अराजक होने से कौन बचा पाएगा। ऐसे में हम यह उम्मीद नहीं पाल सकते कि हमारा प्रधानमंत्री हमसे अलग चरित्र का होगा। पहले हमें अपने चरित्र को दिखाना होगा, फिर हम नेताओं के चरित्र का मूल्याकन कर सकते हैं। 16 मई को जो हमरा चरित्र दिखेगा, उसी के आधार पर हम नेताओं के चरित्र को भी रेखांकित कर पाएंगे। अभी तो हम सिर्फ उन नेताओं को इतना ही कह सकते हैं कि पहले सांसद बन जाइए, फिर प्रधानमंत्री बनने की सोचिएगा।
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