इसमाद

Monday, April 20, 2009

आखिर कौन निकाल रहा लालटेन का तेल?

बिहार में लालटेन की लौ धीमी पड़ रही है। पहले चरण के मतदान के बाद लालू यह समझ नहीं पा रहे हैं कि आखिर उनकी लालटेन का तेल कौन निकाल रहा है। बुझती लालटेन से बौखलाए लालू हर रोज एक नया दांव खेल रहे हैं, लेकिन हर दांव उनके लिए उलटा पड़ रहा है। इधर जदयू के स्टार प्रचारक व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार लालू की तमाम दुखती रगों पर उंगली रखने से नहीं चूक रहे हैं। लालू प्रसाद नीतीश की इस चतुराई के 'तीर का अब तक कोई कारगर काट पैदा नहीं कर पाए। वैसे पहले चरण के लिए हुए चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने अपना मुख्य निशाना मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और भाजपा नेता अडवानी को बनाया था, लेकिन दूसरे चरण में उनके निशाने पर मुख्य रूप से कांग्रेस रही। दरअसल कांग्रेस को बिहार में बिल्कुल मरी हुई पार्टी मानते आ रहे लालू-पासवान को इस बार थोड़ा आघात लगा है। लालू-पासवान को शुरू में लगा था कि इस नई दोस्ती का बड़ा चमत्कारिक असर होगा, लेकिन इस संभावना को न तो मीडिया की तरफ से और न ही 'माई की तरफ से कोई खास बढ़ावा या प्रचार मिला। पहले चरण के मतदान के बाद मिले रुझान व दूसरे चरण में बने माहौल के बाद रामविलास पासवान ने जहां कांग्रेस सेे बिहार में पुनर्विचार करने की गुहार लगा दी, वहीं राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद अपनी आक्रामकता को बनाए रखने के लिए आचार संहिता की परवाह किए बिना तीखे शब्दबाण चलाने का मजबूर हो गए। राजद का एक गुट भी साफ तौर पर यह मानने लगा है कि कांग्रेस से अलगाव बिहार में भारी पड़ रहा है। इस गुट का मानना है कि कांग्रेस के लिए मात्र पांच सीटें छोड़ दी जातीं, तो बात बन जाती। यानी यूपीए का बिहार में ऐसा बिखराव नहीं होता। राजग ने यूपीए के इस बिखराव को बिहार में प्रचार का एक कारगर हथियार बना लिया है। राजग के समर्थन में आयोजित सभाओं के वक्ताओं ने इस हथियार का प्रयोग कर लालू को कुछ ज्यादा ही चिढ़ा दिया है। खास तौर से मिथिला का क्षेत्र, जो लालू का गढ़ माना जाता है। यहां 23 अप्रैल को मतदान होना है। यहां की कई सीटों पर अल्पसंख्यकों की संख्या निर्णायक है। मधुबनी और सुपौल जैसी सीटों पर जहां राजद का मुख्य मुकाबला कांग्रेस से है, वहीं दरभंगा, समस्तीपुर और झंझारपुर जैसी सीटों पर अल्पसंख्यक मतों का बिखराव होने की गुंजाइश दिख रही है। ऐसे में दूसरे चरण के लिए राजग से अधिक लालू को कांग्रेस परेशान कर रही है। अल्पसंख्यकों को कांग्रेस की तरफ जाने से रोकने के लिए लालू हर पैतरा अजमा रहे हैं, लेकिन वक्त की बात है कि इसका असर लोगों पर नहीं हो रहा है। अल्पसंख्यकों के इस रुझान से लालू इतने हताश हुए कि अपने प्रचार अभियान में अब तक कांग्रेस पर निशाना साधने में जो उन्होंने संकोच रखा था, उसे भी त्याग दिया। लालू के 'लक्ष्मण रेखाÓ लांघने से कांग्रेसी नेताओं को भी राहत मिली, क्यों कि चुनाव प्रचार के दौरान कुछ ऐसी ही मुश्किलें उन्हें भी आ रही थीं। इस धर्म संकट को खत्म करना भी लालू के लिए उलटा पड़ा। राजग की तरफ से चोट-पर-चोट खा रहे लालू पर कांग्रेस ने भी चौतरफा हमला बोल दिया। लालू को अंदर से हार का खतरा सताए जा रहा है, क्यों कि 23 अप्रैल को उन सीटों पर मतदान हो रहे हैं, जो दिल्ली में लालू का ओहदा तय करेगा। अगले दो चरण लालू के लिए उतने महत्वपूर्ण नहीं है, क्योंकि वह इलाका लालू का नहीं रहा है। लालू को अब जातीय समीकारण भी परेशान करने लगा है। 'माई में जहां कांग्रेस की घुसपैठ होने की खबर है, वहीं पिछड़ों और अति-पिछड़ों में अलगाव दिख रहा है। पंचायत चुनाव में अति-पिछड़ों को 20 फीसदी आरक्षण देकर नीतीश ने जो दांव खेला था, उसका अब असर दिखने लगा है। मुजफ्फरपुर से जदयू उम्मीदवार जयनारायण निषाद का कहना है कि लालू का 'जिन्नÓ तो अति-पिछड़ा वर्ग ही था, जिसे उन्होंने बोतल में बंद कर रखा था। नीतीश कुमार उसे बोतल से बाहर कर चुके है और अब वह 'जिन्नÓ लालू के पास नहीं है। प्रचार अभियान में लामबंदी की कला के माहिर लालू को इस बार नीतीश की शालीनता के कारण ज्यादा मसाला नहीं मिल पा रहा है। लालूजी की चिढ़ यह भी है कि आखिर नीतीश कुमार को गुस्सा क्यों नहीं आता है और वे उनपर उन्हीं के अंदाज में आक्रमक पलटवार क्यों नहीं कर रहे हैं। नीतीश है कि बेहद चतुराई के साथ केवल और केवल 'विकास के उस मंत्र का पारायण किए जा रहे हैं, जिस पर लालूजी कुछ बोल ही नहीं पा रहे हैं। जातीय समीकारण के विखंडन और अकलियतों में विखराव से लालू ऐसे चक्रव्यूह में फंस चुके हैं कि चुनावी मंच पर अपने किए हुए काम का जिक्र तक करने का समय नहीं निकाल पाए। वे अधिकतर समय राजग और कांग्रेस की आलोचना में ही उलझे रहे। विरोधी की यह चाल भी दूसरे चरण में काफी हद तक कामयाब रही कि लालू मंच पर अपने कामों का जिक्र नहीं कर सकें। यही कारण है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को 'विकास पुरुषÓ जैसी उपमा दिए जाने पर लालू-राबड़ी अपना गुस्सा कंट्रोल नहीं कर पा रहे हैं। जिस बात को राबड़ी देवी ने नीतीश कुमार को शर्मिंदा करने के लिए उछाला, उसे नीतीश कुमार ने अपने हक में राजनीतिक हवा बनाने के लिए मोड़ दिया। नीतीश कुमार की इस चतुराई से हताश हो चुके लालू अब यह तय नहीं कर पा रहे कि अगले दो चरणों के प्रचार अभियान में वो नीतीश को मुख्य निशाना बनाएं या फिर कांग्रेस को। क्योंकि लालू के लालटेन को बुझाने के लिए जहां नीतीश 'तीर चला रहे हैं, वहीं कांग्रेस का 'हाथ लालटेन की तेल निकालने में लगा हुआ है।

2 comments:

Sanjay Grover said...

हुज़ूर आपका भी एहतिराम करता चलूं ...........
इधर से गुज़रा था, सोचा, सलाम करता चलूं ऽऽऽऽऽऽऽऽ

ये मेरे ख्वाब की दुनिया (नहीं) सही, लेकिन
अब आ गया हूं तो दो दिन क़याम करता चलूं
-(बकौल मूल शायर)

Ajeet K L Karna said...

bahut neek!