इसमाद

Tuesday, April 14, 2009

आज जुड़-शीतल है

आज जुड़-शीतल है। मिथिला का पावन पर्व। बहुत लोग इस पर्व के संबंध में नहीं जानते, मिथिला में भी यह पर्व सिमटता जा रहा है। अखबार और पत्रिका भी इस पर्व के संबंध में कोई जानकारी नहीं दे रही है। उनकी भी मजबूरी है। न कोई बड़ा नेता इस पर्व को मनाता है और न ही कोई कलाकार या खिलाड़ी। ऐसे में इस पर्व के बारे में कहीं न जगह है और न ही कहीं समय। लेकिन इस पर्व की रोचकता और वैज्ञानिकता इसे मरने से बचा रखी है। अगर इस पर्व को छठ के समान प्रचारित किया जाए, तो इस अद्भूत पर्व पर पूरा देश फिदा हो जाएगा। मूलरूप से यह पर्व सूचिता अर्थात साफ-सफाई से संबंध रखता है। इस दिन उन सभी स्थानों को विशेष तौर पर साफ किया जाता है जहां पानी होता है। जैसे तालाब, कुआं, मटका, संप, टंकी आदि। परंपरा के अनुसार इन स्थानों की सफाई के दौरान विनोदपूर्ण क्रिया की जाती है। जैसे एक-दूसरे के ऊपर पानी डालना या फिर तालाब या कुंए से निकलनेवाली काई अथार्त सड़ी मिट्टïी एक-दूसरे पर फेंकी जाती है। इस सफाई से जहां तालाब और कुंए में नए जल का आगमन होता है, वहीं समाज के सभी जातियों व वर्गों का आपस में मेल-मिलाप भी बढ़ता है। छठ की तरह ही इस पर्व में भी जाति या धर्म का कोई बंधन नहीं होता है और लोग आपस में मिलजुल कर सार्वजनिक व निजी जलसंग्रहण स्थल की सफाई करते हैं। एक प्रकार से यह पर्व होली की तरह ही मनाई जाती है। फर्क सिर्फ इतना है कि इसमें पानी और किचड़ मात्र से एक-दूसरे को नहलाया जाता है।इस पर्व की एक और विशेषता है। क्या आप कभी अपने रसोई को आराम देने की बात सोची है। मिथिला में आज के दिन रसोई को एक शाम पूर्णत: आराम दिया जाता है। मतलब साफ है एक शाम चूल्हा बंद। सभी बासी (एक दिन पहले बना हुआ खाना) खाना खाते है और रात में सत्तू और बेसन से बनी सब्जी खाई जाती है। शाम को आसमान पतंगों से भरा होता है। मिथिला के कई शहरों व गावों में आज के दिन मेला लगता है और लोग तरह-तरह के पतंग लेकर आसमान में पेंच लड़ाते हैं। इस पर्व को बचना चाहिए, फैलना चाहिए, क्योंकि यह समाज को धर्म और जाति के बंधन से मुक्त करता है।

4 comments:

Gajendra said...

अच्छा लगा पढ़ कर। कभी होली का मजा धुरखेल में उठाते थे, ब्लॉक मे जुड़ शीतल की छुट्टी नहीं होती थी। लोग जब वहाँ के कर्मचारियों को धूल-मिट्टी देते थे तो वे कहते थे कि होली में आप लोग रंग नहीं देते हैं और ये कौन सा पर्व है। पर अब तो याद ही बाकी है। गाँव में भी अब धुरखेल खत्म हो चुका है।अब तो होली ने इस पर्व को अपने में समेट लिया है । बहरहाल आपने याद दिला दिया तो हमने भी कुछ याद कर डाला।

Pawan Mall said...

आप हिन्दी में लिखते हैं. अच्छा लगता है. मेरी शुभकामनाऐं आपके साथ हैं
Pawan Mall
latife.co.nr

gazalkbahane said...

अच्छा लिखा-लिखते रहें
वोट अवश्य डालें और दो में से किसी एक तथाकथित ही सही राष्ट्रीय या यूं कहें बड़ी पार्टियों में से एक के उम्मीदवार को दें,जिससे कम से कम
सांसदो की दलाली तो रूके-छोटे घटको का ब्लैक मेल[शिबू-सारेण जैसे]से तो बचे अपना लोक-तंत्र ?
गज़ल कविता हेतु मेरे ब्लॉगस पर सादर आमंत्रित हैं।
http://gazalkbahane.blogspot.com/ कम से कम दो गज़ल [वज्न सहित] हर सप्ताह
http:/katha-kavita.blogspot.com/ दो छंद मुक्त कविता हर सप्ताह कभी-कभी लघु-कथा या कथा का छौंक भी मिलेगा
सस्नेह
श्यामसखा‘श्याम
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गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

narayan....narayan...narayan