इसमाद

Sunday, April 12, 2009

एक विरोधी, जो फैन है उनके बोलने का

मोदी बोलते हैं, तो मुझे अच्छा लगता है। मुझे वो और किसी रूप में अच्छे नहीं लगते। मैं उनका कट्टïर विरोधी हूं। अडवानी जी उन्हें आदर्श नेता मानते है। उन्हें उसीके रूप में प्रस्तुत करते हैं। उन्हें मॉडल बना कर चुनाव लडऩे की घोषणा करते हैं। रमण सिंह और शिवराज सिंह चौहान जैसे आदर्श नेता के रहते अडवानी ऐसा क्यों कर रहे हैं, मेरे समझ के परे है। यहां तक कि वसुंधरा का हार जाना अलग बात है, लेकिन उनकी नेतृत्व क्षमता पर किसी को कोई शक नहीं है। नरेंद्र मोदी की चर्चा आज क्यों। कारण है बिहार के मुख्यमंत्री का वह बयान, जिसमें उन्होंने कहा है कि बिहार में नरेंद्र मोदी की आवश्यकता नहीं। मोदी पिछले विधानसभा में भी बिहार नहीं गए थे। बिहार वह इलाका है, जहां सीता का जन्म हुआ था और वह राम का ससुराल है। एक बिहारी के नाते मेरे ख्याल से मोदी को आदर्श मानना भारतीय संस्कृति के खिलाफ है। इसके पीछे भी तर्क है। मोदी एक अच्छे राजनीतिज्ञ है। अपने राज्य को एक विकसित राज्य ही नहीं, बल्कि उन अग्रणी राज्यों की कतार में ले गए जो दुनिया के विकसित इलाकों में गिने जाते हैं। उन्होंने अपनी जिंदगी में केवल एक ही गलती की, अपनों (हिन्दू) के साथ ट्रेन में हुई तथाकथित अन्याय के बाद गोधरा में हुए कत्लेआम पर कुछ घंटे की खामोश रहने की। मैं नरेंद्र मोदी की तुलना रामायण के उस रावण से करता हूं, जो विद्वान था, महान राजनीतिज्ञ था और अपने राज्य को इतना विकसित कर रखा था कि उसे सोने की लंका कहा जाता है। रावण ने भी एक ही गलती की थी, अपनों के साथ हुए अन्याय का बदला लेने के लिए सीता का अपहरण कर लिया था। गुजरात आज न सोने की बन पाई है और न मोदी भारत के सबसे बड़े राजनीतिज्ञ ही कहे जाते हैं। जब आज तक रावण किसी का आदर्श नहीं बन सका, तो मोदी भला कैसे इस देश के लिए आदर्श बन सकते हैं। विकसित राज्य या राजनीतिज्ञ रूप से विद्वान होना, इस देश के लोगों के लिए कोई आदर्श होता तो राम नहीं, रावण कर पूजा की जा रही होती।

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