इसमाद

Sunday, April 12, 2009

क्या तुम कांग्रेसी बनना चाहते हो?

मुझे याद है मैंने अपना पहला वोट कांग्रेस को नहीं डाला था। उसके बाद कांग्रेस ने मुझे कभी मौका ही नहीं दिया। वह बिहार में खड़ी ही नहीं होती थी। इस बार बिहार में कांग्रेस अकेले मैदान में उतरी है। लालटेन ढोनेवाला हाथ का पंजा आखिरकार खुला। वर्षों बाद कांग्रेसी की तलाश शुरू हुई। कार्यालय से लेकर संग्रहालय तक तलाश अभियान चला। कहीं कोई नहीं मिला। कुछ पुराने नेताओं को मैदान में उतारने का प्रयास हुआ, तो पता चला उनका पता बदल चुका है। जो मिले वो भी सामने आने से कतरा गए। आखिरकार, लडऩा तो है ही। कांग्रेस ने उन नेताओं को कांग्रेसी बनाने की कोशिश की, जो जन्म से ही कांग्रेस विरोधी रहे। ये वो नेता हैं, जिनकी आज छाप लालू, नीतीश और पासवान भी अपने ऊपर नहीं लगने देना चाहते हैं। बड़ी मुश्किल से तीनों नेताओं ने एक अघोषित समझौता कर इन्हें टिकट से वंचित किया था। सोचा था इस बार बाहुबल और आपराधिक छविवाले नेताओं को पार्टीगत उम्मीदवार नहीं बना कर बिहार की गरिमा कुछ बढ़ाई जाए। लेकिन बिहार को गर्त में पहुंचा देनेवाली कांग्रेस भला ऐसा होने देती। उसे यह मंजूर नहीं था। सभी छटे अपराधी, लफंगे, नौटंकीबाज.....को कांग्रेसी बनने के प्रस्ताव के साथ-साथ पार्टी टिकट भी थमा बैठी। कुछ लोगों का तर्क है कि इससे कम से कम बिहार में कांग्रेस का नामलेबा तो हुआ, लेकिन सवाल यह है कि कांग्रेस आखिर बिहार को क्या देना चाहती है। बिहार में जिन लोगों की आलोचना और विरोध पूरे देश में हो रहा है। बिहार की जनता उन्हें ठुकराने का मन बना चुकी है। राज्य के तीन प्रमुख दल उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया। ऐसे लोगों को टिकट देकर कांग्रेस आखिर बिहार को आगे ले जाना चाहती है या पीछे। यह समझ के परे है। कांग्रेस शायद बिहार को समझ नहीं पा रही है। वह बिहार को एक ऐसा समाज मान बैठी है, जिसमें सोचने और आगे बढऩे की कोई इच्छा नहीं है। लेकिन कांग्रेस की इस सोच को आनेवाले दिनों में जो उत्तर मिलेगा वह मेरी सोच को भी प्रभावित करेगा।

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