इसमाद

Wednesday, September 29, 2010

...अंत भला तो सब भला

अमरेन्द्र कुमार
डेडलाइन और थूका फजीहत। खूब झेली सरकार ने, आयोजन समिति ने और निर्माण कार्यों में जुटी एजेंसियों ने। सामने है राष्टÑमंडल खेल का आयोजन। अंदेशा, कहीं हो न हो ये आयोजन रद्द हो जाए। इधर, विदेशियों की झिड़कियां। समावेश ऐसा कि सब कहने लगे अब नहीं हो पाएगा राष्टÑमंडल खेल का आयोजन। राष्ट्रमंडल खेलों के अध्यक्ष माइक फेनेल आए, फेडरेशन के सीईओ माइक हूपर आए। सबने बस यही कहा-यहां खेल होना मुश्किल है। दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला नर्वस हो गर्इं। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को कमान संभालनी पड़ी। कलमाड़ी को दरकिनार किया गया।
तैयारियों के चलते आई सारी समस्याओं का तो अंत नहीं हुआ लेकिन अब जैसे-तैसे सब कुछ बदलने लगा है। खिलाड़ी आने लगे हैं। इंग्लैंड की टीम तो शुक्रवार को पहुंच भी गई। नाखुश मेहमानों का भी रवैया बदल गया है दुनिया के पांच साइक्लिस्टों के शिरकत नहीं करने की घोषणा और आॅस्ट्रेलिया द्वारा दिल्ली को मिली मेजबानी पर उठाए गए सवाल भी अब खत्म हो गए हैं। यहां तक कि न्यूजीलैंड के प्रधानमंत्री जान ने तो यहां तक खुशी जताई है कि अगर वह विश्वस्तरीय एथलीट होते तो राष्टÑमंडल खेलों में भाग लेने दिल्ली जरूर जाते। जान ने यह बात यहां पुख्ता सुविधाओं खासकर सुरक्षा व्यवस्था के आधार को मानकर कही। वही खेलगांव जो राष्टÑमंडल खेलों की नाक बना हुआ है इसपर ना जाने कितनी अंगुलियां उठीं। लेकिन पिछले 24 घंटे में खेलगांव को लेकर किए गए सारे आरोप-प्रत्यारोप खत्म हो गए हैं। सबने मानना शुरू कर दिया है कि राष्टÑमंडल खेल के आयोजन को लेकर दिल्ली सर्वोत्तम पसंद है। कल तक बारिश भी खलनायक बनकर दिल्ली के सिर पर मंडरा रही थी। आज राजधानी पर मंडरा रहे सारे काले बादल छंट गए हैं।
बात बदलती चली गई- फेनेल ने भी शुक्रवार को कह दिया कि पिछली रात फेडरेशन के सीईओ ने जो स्थिति बताई उसके मुताबिक खेलगांव में काफी प्रगति हुई है। फेनेल ऐसा कहें भी क्यों न। दिल्ली सरकार ने खेलगांव में 1,200 से ज्यादा कर्मचारियों की पूरी फौज जो खड़ी कर दी है। चौकस सुरक्षा के साथ-साथ सफाई की पूरी व्यवस्था की गई है।
दिल्ली पुलिस के साथ-साथ अर्धसैनिक बलों ने मोर्चा संभाल लिया है। सफाई से लेकर अन्य व्यवस्था के लिए नगर निगम और एनडीएमसी के सफाई कर्मियों के अलावा फाइव स्टार होटलों के सुपरवाइजर, प्लंबर, इलेक्ट्रिशियन और दूसरे कर्मचारियों की मदद ली जा रही है। निगम की मदद से खेल की बाउंड्री में घूम रहे 125 कुत्तों को भी बाहर निकाला गया है। कुत्तों के आने-जाने का रास्ता बनी टूटी दीवार को भी बंद किया जा रहा है। अब वहीं खिलाड़ी ठहराए जाने हैं। ज्ञात हो अब तक खेलगांव में यह हालत थी कि फ्लैट्स में आवारा कुत्तों का आवाजाही आम बनी हुई थी जिस पर कोई रोक भी नहीं लग पा रही थी। लेकिन अब लगभग सब कुछ ठीक हो गया है।
कल तक बारिश को कोसती सरकार अब जल्दबाजी में सबकुछ भूल कर व्यवस्था चुस्त दिखाने में जुट गई है। हमारी दिल्ली हर तरफ चकाचक दिखे। यह व्यवस्था की गई है। समय कम है, बारिश ने जो बिगाड़ा, हमारी तैयारी जो पीछे छूट गई, उसकी भरपाई तो पूरी तरह संभव नहीं है। लेकिन बिगड़े को ढंककर सुधारने की तमाम व्यवस्था की गई है। इसके मद्देनजर सड़कों के किनारों शेरा से बने बड़े-बडेÞ होर्डिंग्स लगाए जा रहे हैं। दिल्ली वासियों से अपील की जा रही है, खेलों को त्यौहार की तरह लें और राजधानी को अपने घर की तरह चमका कर रखें। वहीं पिछले सप्ताह में राजधानी में घटी दो-चार घटनाएं जिनमें जामा मस्जिद गोलीबारी से ज्यादा खौफ बढ़ गया था। इस घटना ने देश के साथ-साथ विदेशियों के भी रोंगटे खड़े कर दिए थे। यह हालत इसलिए हुई क्योंकि उन हमलावरों के निशाने पर विदेशी पर्यटक थे। दो ताइवानियों को गोली लगी थी। लेकिन अब सुरक्षा पर भी कोई सवाल नहीं बचा है। इसका अंदाजा चारों ओर खासकर हर स्टेडियम के बाहर और 100 मीटर की दूरी तक पुलिस, आर्मी व अन्य सुरक्षा बल तैनात कर दिए गए हैं। इस पर केंद्रीय गृह मंत्री पी चिदंबरम ने भी कहा है कि राष्टÑमंडल खेलों को लेकर पैदा हुई सुरक्षा संबंधी चिंताओं को पुलिस और सुरक्षा एजेंसियों ने दूर कर दिया है। पुलिस और सुरक्षा कर्मियों ने खेलों से संबंधित 11 स्थलों में से 10 को अपने कब्जे में ले लिया है। आईजीआई एयरपोर्ट से लेकर खिलाड़ियों को खेलगांव तक सुरक्षित पहुंचाने की सारी व्यवस्था की गई है। सड़कों पर खिलाड़ियों को लाने-ले जाने के लिए एक अलग लेन बना दी गई है। यानी तमाम अफवाहें एक तरफ और हमारी तैयारी एक तरफ। सुकून तो तब भी नहीं है। और क्या-क्या होना चाहिए था। सवाल अब भी है। फिर भी अब जब खिलाड़ियों का आगमन शुरू हो गया है। नेहरू स्टेडियम में उद्घाटन समारोह का रिहर्सल प्रारंभ हो गया है, तो बस एक ही बात.... अंत भला तो सब भला।

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